हनुमानजी स्तुति

॥ बजरंग बाण ॥

॥ संकट मोचन हनुमानाष्टक ॥

॥ श्री हनुमान चालीसा ॥

॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥

॥ श्री हनुमान जी की आरती ॥

बजरंग बाण

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥


जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका ॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा ॥


अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई ॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी ॥
जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख हरहुं निपाता ॥


जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले ॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो ॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के ॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥


वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं ॥
पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों ॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता ॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥


भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर ॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥


चरण शरण करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों ॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई ॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल ॥


अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की ॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपै ॥


धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा ॥

॥ दोहा ॥

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान ॥

संकट मोचन हनुमानाष्टक

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,
रघुपतिप्रियं भक्तं वातंजातं नमामि ॥

बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥२॥

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥३॥

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो॥४॥

बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥५॥

रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥६॥

बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥७॥

काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो ॥८॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥

श्री हनुमान चालीसा

॥ दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥

सम्पुट : रामजी से राम राम कहियो, कहियो जी हनुमान जी -२

॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ॥२४

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८

चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२

तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६

जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०

॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,
श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥

श्री हनुमान जी की आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥